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diu liefen älliu driu für in.
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si sprâchen "hêrre, hâstu sin |
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(dir zelt rêgîn de Franze |
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der werden minne schanze), |
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sô mahtu spilen sunder phant: |
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dîn freude ist kumbers ledec zehant." |
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Dô diu botschaft was vernomn, |
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Kaylet, der ê was komn, |
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saz ter küngîn undr ir mandels ort: |
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hinz im sprach si disiu wort. |
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"sag an, ist dir iht mêr geschehen? |
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ich hân slege an dir gesehen." |
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do begreif im diu gehiure |
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sîne quaschiure |
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mit ir linden handen wîz: |
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an den lac der gotes flîz. |
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dô was im gamesieret |
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und sêre zequaschieret |
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hiufel, kinne, und an der nasen. |
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er hete der küneginne basen, |
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diu dise êre an im begienc |
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daz sin mit handen zir gevienc. |
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si sprach nâch zühte lêre |
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hinz Gahmurete mêre |
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"iu biutet vaste ir minne |
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diu werde Franzoysinne. |
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nu êret an mir elliu wîp, |
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und lât ze rehte mînen lîp. |
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sît hie unz ich mîn reht genem: |
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ir lâzet anders mich in schem." |
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