| 149,1
|
im kunde niemen vîent sîn. |
|
|
| 149,2
|
do besah in ouch diu künegîn, |
| 149,3
|
ê si schiede von dem palas, |
| 149,4
|
dâ si dâ vor begozzen was.
|
| 149,5
|
Artûs an den knappen sach: |
| 149,6
|
zuo dem tumben er dô sprach |
| 149,7
|
"junchêrre, got vergelt iu gruoz, |
| 149,8
|
den ich vil gerne dienen muoz |
| 149,9
|
mit [dem] lîbe und mit dem guote. |
| 149,10
|
des ist mir wol ze muote." |
| 149,11
|
"wolt et got, wan wær daz wâr! |
| 149,12
|
der wîle dunket mich ein jâr, |
| 149,13
|
daz ich niht ritter wesen sol, |
| 149,14
|
daz tuot mir wirs denne wol. |
| 149,15
|
nune sûmet mich niht mêre, |
| 149,16
|
phlegt mîn nâch ritters êre." |
| 149,17
|
"daz tuon ich gerne," sprach der wirt, |
| 149,18
|
"ob werdekeit mich niht verbirt. |
| 149,19
|
Du bist wol sô gehiure, |
| 149,20
|
rîch an koste stiure |
| 149,21
|
wirt dir mîn gâbe undertân. |
| 149,22
|
dêswâr ich solz ungerne lân. |
| 149,23
|
du solt unz morgen beiten: |
| 149,24
|
ich wil dich wol bereiten." |
| 149,25
|
der wol geborne knappe |
| 149,26
|
hielt gagernde als ein trappe. |
| 149,27
|
er sprach "in wil hie nihtes biten. |
| 149,28
|
mir kom ein ritter widerriten: |
| 149,29
|
mac mir des harnasch werden niht, |
| 149,30
|
ine ruoch wer küneges gâbe giht. |
|