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Beide lief unde spranc |
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Segramors, der ie nâch strîte ranc. |
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swâ der vehten wânde vinden, |
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dâ muose man in binden, |
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odr er wolt dermite sîn. |
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ninder ist sô breit der Rîn, |
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sæher strîtn am andern stade, |
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dâ wurde wênec nâch dem bade |
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getast, ez wær warm oder kalt: |
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er viel sus dran, der degen balt. |
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snellîche kom der jungelinc |
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ze hove an Artûses rinc. |
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der werde künec vaste slief. |
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Segramors im durch die snüere lief, |
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zer poulûns tür dranger în,
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ein declachen zobelîn |
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zuct er ab in diu lâgen |
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und süezes slâfes pflâgen, |
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sô daz si muosen wachen |
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und sînre unfuoge lachen. |
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dô sprach er zuo der niftel sîn. |
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"Gynovêr, frouwe künegîn, |
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unser sippe ist des bekant, |
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man weiz wol über manec lant |
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daz ich genâden wart an dich. |
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nu hilf mir, frouwe, unde sprich |
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gein Artûse dînem man, |
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daz ich von im müeze hân |
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(ein âventiure ist hie bî) |
| 285,30
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daz ich zer tjost der êrste sî." |
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