| 301,1
|
Des erwirbe ich iu die hulde, |
|
|
| 301,2
|
daz der künec læt die schulde, |
| 301,3
|
welt ir nâch mîme râte lebn, |
| 301,4
|
geselleschaft mir für in gebn." |
| 301,5
|
des künec Gahmuretes kint, |
| 301,6
|
dröwen und vlêhn was im ein wint. |
| 301,7
|
der tavelrunder hôhster prîs |
| 301,8
|
Gâwân was solher nœte al wîs: |
| 301,9
|
er het se unsanfte erkant, |
| 301,10
|
do er mit dem mezer durh die hant |
| 301,11
|
stach: des twang in minnen kraft |
| 301,12
|
unt wert wîplîch geselleschaft. |
| 301,13
|
in schiet von tôde ein künegîn, |
| 301,14
|
dô der küene Lähelîn |
| 301,15
|
mit einer tjoste rîche |
| 301,16
|
in twanc sô volleclîche. |
| 301,17
|
diu senfte süeze wol gevar |
| 301,18
|
ze pfande sazt ir houbet dar, |
| 301,19
|
roin Ingûse de Bahtarliez: |
| 301,20
|
alsus diu getriwe hiez. |
| 301,21
|
dô dâhte mîn hêr Gâwân |
| 301,22
|
"waz op diu minne disen man |
| 301,23
|
twinget als si mich dô twanc, |
| 301,24
|
und sîn getriulîch gedanc |
| 301,25
|
der minne muoz ir siges jehen?" |
| 301,26
|
er marcte des Wâleises sehen, |
| 301,27
|
war stüenden im diu ougen sîn. |
| 301,28
|
ein failen tuoches von Sûrîn, |
| 301,29
|
gefurriert mit gelwem zindâl, |
| 301,30
|
die swanger über diu bluotes mâl. |
|