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Dô sprach der junge Meljanz |
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"iwer zuht was ie sô ganz, |
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die wîle daz ich wonte hie, |
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daz iwer rât mich nie verlie. |
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het ich iu baz gevolget dô, |
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sô sæhe man mich hiute frô. |
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nu helft mir, grâve Scherules, |
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wande ich iu wol getrûwe des, |
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um mînen hêrrn der mich hie hât, |
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(si hœrnt wol bêde iwern rât) |
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und Lyppaut, der ander vater mîn, |
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der tuo sîn zuht nu gein mir schîn. |
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sîner hulde het ich niht verlorn, |
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wold es sîn tohter hân enborn. |
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diu prüevete gein mir tôren schimpf: |
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daz was unfrouwenlîch gelimpf." |
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dô sprach der werde Gâwân |
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"hie wirt ein suone getân, |
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die niemen scheidet wan der tôt." |
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dô kômen, die der ritter rôt |
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hin ûz hete gevangen, |
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ûf für den künec gegangen: |
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die sageten wiez dâ wære komn. |
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dô Gâwân hête vernomn |
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sîniu wâpen, der mit in dâ streit, |
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und wem si gâben sicherheit, |
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und dô sim sagten umben grâl, |
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dô dâhter des, daz Parzivâl |
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diss mæres wære ein urhap. |
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sîn nîgen er gein himel gap, |
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