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Gâwân vriesch diu mære |
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von der tjoste pfandære. |
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Plippalinôt nam alsô pfant: |
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swelch tjoste wart aldâ bekant, |
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daz einer viel, der ander saz, |
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so enpfienger ân ir beider haz |
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dises flust unt jens gewin: |
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ich mein daz ors: daz zôher hin. |
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ern ruochte, striten si genuoc: |
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swer prîs oder laster truoc, |
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des liez er jehn die frouwen: |
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si mohtenz dicke schouwen. |
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Gâwânn er vaste sitzen bat. |
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er zôch imz ors an den stat, |
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er bôt im schilt unde sper. |
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hie kom der turkoyte her, |
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kalopierende als ein man |
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der sîne tjoste mezzen kan |
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weder ze hôch noch ze nider. |
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Gâwân kom gein im hin wider. |
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von Munsalvæsche Gringuljete |
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tet nâch Gâwânes bete |
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als ez der zoum gelêrte. |
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ûf den plân er kêrte. |
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hurtâ, lât die tjoste tuon. |
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hie kom des künec Lôtes suon |
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manlîch unde ân herzen schric. |
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wâ hât diu helmsnuor ir stric? |
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des turkoyten tjost in traf aldâ. |
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Gâwân ruort in anderswâ, |
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