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Artûs ze Parzivâle sprach |
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"neve, sît dir sus geschach |
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daz du des kampfes bæte |
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und manlîche tæte |
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unt Gâwân dirz versagte, |
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daz dîn munt dô sêre klagete, |
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nu hâste den kamph idoch gestriten |
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gein im der sîn dâ het erbiten, |
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ez wære uns leit ode liep. |
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du sliche von uns als ein diep: |
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wir heten anders dîne hant |
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disses kampfes wol erwant. |
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nu darf Gâwân des zürnen niht, |
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swaz man dir drumbe prîses giht." |
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Gâwân sprach "mir ist niht leit |
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mîns neven hôhiu werdekeit. |
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mirst dennoch morgen alze fruo, |
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sol ich kampfes grîfen zuo.
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wolt michs der künec erlâzen, |
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des jæhe ich im gein mâzen." |
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daz her reit în mit maneger schar. |
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man sach dâ frouwen wol gevar, |
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und manegen gezimierten man, |
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daz nie dechein her mêr gewan |
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solher zimierde wunder. |
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die von der tavelrunder |
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und diu mässenîe der herzogîn, |
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ir wâpenrocke gâben schîn |
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mit pfell von Cynidunte |
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und brâht von Pelpîunte: |
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