667,1
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Nu lât Artûsen stille ligen. |
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Gâwâns grüezen wart verswigen |
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in den tac: unsanfte erz meit. |
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des morgens fruo mit krache reit |
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gein Jôflanze Artûses her. |
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sîn nâchhuot schuof er ze wer: |
667,7
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dô die niht strîtes funden dâ, |
667,8
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si kêrten nâch im ûf die slâ. |
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dô nam mîn hêr Gâwân |
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sîn ambetliute sunder dan. |
667,11
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niht langr er wolde bîten, |
667,12
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er hiez den marschalc rîten |
667,13
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ze Jôflanze ûf den plân. |
667,14
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"sunderleger wil ich hân. |
667,15
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du sihst daz grôze her dâ ligen: |
667,16
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ez ist et nu alsô gedigen, |
667,17
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ir hêrren muoz i'u nennen, |
667,18
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daz ir den müget erkennen. |
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ez ist mîn œheim Artûs, |
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in des hove und in des hûs |
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ich von kinde bin erzogn. |
667,22
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nu schaffet mir für unbetrogn |
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mîn reise alsô mit koste dar, |
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daz mans für rîchheit neme war, |
667,25
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und lât hie ûffe unvernomn |
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daz Artûs her durch mich sî komn." |
667,27
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si leisten swaz er in gebôt. |
667,28
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des wart Plippalinôt |
667,29
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dar nâch unmüezic schiere. |
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kocken, ussiere, |
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