122,1
|
ern hete sô liehtes niht erkant. |
|
|
122,2
|
ûfem touwe der wâpenroc erwant. |
122,3
|
mit guldîn schellen kleine |
122,4
|
vor iewederm beine |
122,5
|
wârn die stegreife erklenget |
122,6
|
unt ze rehter mâze erlenget. |
122,7
|
sîn zeswer arm von schellen klanc, |
122,8
|
swar ern bôt oder swanc. |
122,9
|
der was durch swertslege sô hel: |
122,10
|
der helt was gein prîse snel. |
122,11
|
sus fuor der fürste rîche, |
122,12
|
gezimiert wünneclîche. |
122,13
|
Aller manne schœne ein bluomen kranz, |
122,14
|
den vrâgte Karnahkarnanz |
122,15
|
"junchêrre, sâht ir für iuch varn |
122,16
|
zwên ritter die sich niht bewarn |
122,17
|
kunnen an ritterlîcher zunft? |
122,18
|
si ringent mit der nôtnunft |
122,19
|
und sint an werdekeit verzagt: |
122,20
|
si füerent roubes eine magt." |
122,21
|
der knappe wânde, swaz er sprach, |
122,22
|
ez wære got, als im verjach |
122,23
|
frou Herzeloyd diu künegîn, |
122,24
|
dô sim underschiet den liehten schîn. |
122,25
|
dô rief er lûte sunder spot |
122,26
|
"nu hilf mir, hilferîcher got." |
122,27
|
vil dicke viel an sîn gebet |
122,28
|
fil li roy Gahmuret. |
122,29
|
der fürste sprach "ich pin niht got, |
122,30
|
ich leiste ab gerne sîn gebot. |
|